धर्म के सिद्धांत कार्यरूप में परिणत नहीं किया जा सकता, तो बौद्धिक व्यायाम के अतिरिक्त उसका और कोई मूल्य नहीं । हमें अपने जीवन की सभी अवस्थाओं में उसे कार्यरूप में परिणत कर सकना चाहिए । आध्यात्मिक और व्यावहारिक जीवन के बीच जो काल्पनिक भेद है, उसे भी मिट जाना चाहिए । क्योंकि वेदांत एक अखंड वस्तु के संबंध में उपदेश देता है । वेदांत कहता है कि एक ही प्राण सर्वत्र विद्यमान है । (आजका आधुनिक विज्ञान यही बात कहता है की सर्वत्र एक ही ऊर्जा विद्यमान है । और संसार उसकी सतत, वेगवान, प्रवाहमान, बदलनेवाली, अभिव्यक्ती है । )
आगे हम और विज्ञानिक बाते देखेंगे । ये जानकर हमारा जीवन बदले । भविष्य के बुद्धिमान मनुष्य का यही विज्ञान और अध्यात्मिक एक ही सिक्के के दो पहलू बतलाने वाला तत्त्वज्ञान होगा ।
आधुनिक विज्ञान कहता है ऊर्जा और पदार्थ, अध्यात्म कहता है ब्रह्म और माया । वैज्ञानिक अपने प्रयोगोंद्वारा मॅटर का भेदन करते हुए भौतिक जगत की एकता को, सतत परिवर्तनशीलताको, अनित्यताको जान लेता है । योगी भी अपने अंतरज्ञान से यही अनुभूति करता है । वैज्ञानिक रिलेटिव्हिटी एवं क्वांटम सिद्धांतो से यहाँ स्पष्टतया पाता है की आकाश (space), काल (Time), रूप (Matter) एवं जड़त्व (Mass) स्वतंत्र नहीं है । एक दूसरे से संबंधीत है । एक ही के अनेक रूप है । एक दूसरे से अलग नही हो सकते । योगी भी अपने समाधी से इसी एकता की अनुभूति करता है । योगी वृक्ष के जड को पकड़ता है और वैज्ञानिक वृक्ष की शाखाओं को जानता है । बाह्य जगत और अंतर्जगत एक ही है । दृश्य (Object ) और द्रषटा (Subject) एकता में परिणत हो जाते है । अद्वैत हो जाते है । योगी आकाश (space), काल (Time), कार्यकारण (Cause & Effect) इन सभी के परे चला जाता है । कर्मबंधन और संसार के परे की यहाँ अनुभूति है जो शब्दातीत, वर्णनातीत कही जा सकती है । यही है सनातन धर्मके शाश्र्वत (सनातन) सिद्धांत ।
क्या है ये परमाणु दर्शन ? क्या है आकाश और काल ? तेजगति की भ्रान्ति क्या है ? द्वैत का भ्रम क्या है ? क्या है नटराजन्रत्य ? क्या है शून्यता या पूर्णता ? क्या है ब्रह्मनाद ओमकार ? और एक ही सत्य की ओर जानेवाले भारत के सभी उपासना पंथ (वैदिक, बौद्ध, जैन, सिक्ख) सनातन धर्म के अंग कैसे है ?
आगे देखेंगे। ....
आगे हम और विज्ञानिक बाते देखेंगे । ये जानकर हमारा जीवन बदले । भविष्य के बुद्धिमान मनुष्य का यही विज्ञान और अध्यात्मिक एक ही सिक्के के दो पहलू बतलाने वाला तत्त्वज्ञान होगा ।
आधुनिक विज्ञान कहता है ऊर्जा और पदार्थ, अध्यात्म कहता है ब्रह्म और माया । वैज्ञानिक अपने प्रयोगोंद्वारा मॅटर का भेदन करते हुए भौतिक जगत की एकता को, सतत परिवर्तनशीलताको, अनित्यताको जान लेता है । योगी भी अपने अंतरज्ञान से यही अनुभूति करता है । वैज्ञानिक रिलेटिव्हिटी एवं क्वांटम सिद्धांतो से यहाँ स्पष्टतया पाता है की आकाश (space), काल (Time), रूप (Matter) एवं जड़त्व (Mass) स्वतंत्र नहीं है । एक दूसरे से संबंधीत है । एक ही के अनेक रूप है । एक दूसरे से अलग नही हो सकते । योगी भी अपने समाधी से इसी एकता की अनुभूति करता है । योगी वृक्ष के जड को पकड़ता है और वैज्ञानिक वृक्ष की शाखाओं को जानता है । बाह्य जगत और अंतर्जगत एक ही है । दृश्य (Object ) और द्रषटा (Subject) एकता में परिणत हो जाते है । अद्वैत हो जाते है । योगी आकाश (space), काल (Time), कार्यकारण (Cause & Effect) इन सभी के परे चला जाता है । कर्मबंधन और संसार के परे की यहाँ अनुभूति है जो शब्दातीत, वर्णनातीत कही जा सकती है । यही है सनातन धर्मके शाश्र्वत (सनातन) सिद्धांत ।
क्या है ये परमाणु दर्शन ? क्या है आकाश और काल ? तेजगति की भ्रान्ति क्या है ? द्वैत का भ्रम क्या है ? क्या है नटराजन्रत्य ? क्या है शून्यता या पूर्णता ? क्या है ब्रह्मनाद ओमकार ? और एक ही सत्य की ओर जानेवाले भारत के सभी उपासना पंथ (वैदिक, बौद्ध, जैन, सिक्ख) सनातन धर्म के अंग कैसे है ?
आगे देखेंगे। ....