Thursday, February 27, 2014

नटराज नृत्य क्या है !

नटराज नृत्य (Cosmic Dance) :
        प्रत्येक परमाणु के लघुकण अविरत प्रकम्प करते रहते है । एक दूसरे से बंधे रहते है तथा एक दूसरे में बदलते रहते है । बिना रुके, अविरत गति से इस सृष्टी में एक एक अनूठे ताल पर इनका नृत्य चलता ही रहता है । और उनमे आपस में एक जाल बन गया है । कोइ अलग नहीं है । उदय व्यय होही रहा है । आपसी बदल भी बन रहा है और प्रचंड शक्ति का प्रवाह लगातार बह रहा है । सारा जगत इसमे झूम रहा है । आकाश में, ग्रहो में, तारो में परमाणु लघुकणों का प्रदीर्घ, अविरत, बिना रुके टकराव चल ही रहा है । वह पृथ्वी की ओर भी खींचा आ रहा है । कुछ ग्रहो में और तारो में अत्यंत शक्तिशाली विद्युत चुम्बकीय प्रकीरणे उत्पन्न होकर रेडिओ तरंगे, प्रकाश तरंगे, एक्स रे तरंगे बनती है और सारी प्रवाहित होती रहती है । ज्योतिष शास्त्र में इसका उपयोग गणित लगाने में बहुत महत्त्वपूर्ण होता है । सारा कॉसमॉस (विश्व) इन तरंगों से भरा हुआ है । यह पृथ्वी पर भी लगातार विस्फोटित होती रहती है । इस प्रकार पृथ्वी के वातावरण में एक बड़ी शक्ती का अविरत प्रवाह उत्पन्न होता ही रहता है । यह सब कॉस्मिक किरणोंका नृत्य बिना रुके चल ही रहा है । यही शिवजी का नृत्य नटराज नृत्य है ।
      शिवनृत्य प्रतीकात्मक है । यह कॉस्मिक किरणोंका उदय व्यय ही बताता है । किन्तु यह जन्म-मृत्यु के चक्कर का भी प्रतीक है । इस जगत में जितने भी रूप (Matter) है ये सबा तरंगोंकाही नृत्य है । और यही माया है । नटराज की मूर्ती को ज़रा ध्यानसे देखे - दाहिने हात में डमरू है । जिसकी आवाज उदय का प्रतीक है । बाए हाथ में अग्नि की ज्वाला है, जो व्यय का प्रतीक है । दोनों हाथो का नृत्य सारे जगत में उदय व्यय का, बनने टूटने का एक सन्तुलन बनाया रखा जा रहा है इसका प्रतीक है । शिवजी के मुखारविंद पर शांती छायी है। दूसरे दोनों में से दाहिना हाथ निर्भय रहो का प्रतीक है । शान्ति सुरक्षा का आधार है । और बाया हाथ नृत्य में उठते पैर की ओर ध्यान आकृष्ट कर रहा है । और बताता है कि " माया से ऊपर उठो " शाश्वत सत्य जानो । यह नृत्य दोनों पैरों के नीचे दानव पर हो रहा है जो बताता है कि " अविद्या को कुचल डालो " सतत बदलती हुई माया को जान कर उस भ्रम को मिटाओ ।
     पूर्ण ब्रह्म : 
      ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्ण मुदच्यते ।
      पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्ण मेवावशिषय ते ॥- सारा पूर्ण है, पूर्ण में से पूर्ण निकालने पर भी पूर्ण शेष रहता है । सारा ब्रम्हांड ब्रह्म से परिपूर्ण है और ब्रम्ह से ही सारा उत्पन्न लय होता है और यही शून्य वस्तुत: परिपूर्ण ब्रम्ह है । यह शून्य परिपूर्णता का प्रतीक मात्र है ।
सारा आकाश शून्य है इस शून्य का अर्थ यह नहीं है की कुछ नहीं है । शून्य का सही अर्थ है " पूर्ण ", परिपूर्ण, सारा व्याप्त है । कुछ भी खाली नहीं है । आकाश तरंगों के उदय व्यय से परिपूर्ण है ।
   ब्रह्मनाद :
     सारा रुप परमाणुओ के लघुकणोंसे परिपूर्ण है । जिनका आपसी संघात अविरत चल रहा है, उदय व्यय हो रहा है । इसी द्वारा एक नाद उत्पन्न होता रहता है । नृत्य जब ताल बदलता है, तो नाद भी बदलता है । प्रत्येक परमाणु अपना ही गाना गाता है । और यही नाद-शक्ती है । यही अनेक रूप उत्पन्न करता है और नष्ट भी करता है । यही जगत का नाद है । ब्रह्मनाद है, ओमकार है । यही रूप (Matter) के अस्तित्त्व का कारण है । समाधी में इसका अनुभव आता है ।
        

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