संत ज्ञानेश्वर ने चामुंडा देवीको अर्पित किया बली !
क्या हम संतोने अनुप्राणित किए हुए मार्गपर चलनेवाले साधक है ? क्या हम भागवतधर्मरुपी भगवान को समर्पित है ? क्या हरीप्रेम से हमारा हृदय विभोर हो जाता है ? क्या हम भक्तिप्रेमरुपी सद्गुरुने बतलाए मार्गपर जा रहे है ? कुलस्वामीनीकी उपासना में क्या सचमुच हमारा नवरात्र धन्य हुआ है ? अगर इसका उत्तर हा है तो दशहरे के दिन माता के नाम अर्पीत होनेवाले बलीप्रथाको हम विरोध करे। संत ज्ञानेश्वर बलीका सत्य अर्थ समझाते है।
क्या हम संतोने अनुप्राणित किए हुए मार्गपर चलनेवाले साधक है ? क्या हम भागवतधर्मरुपी भगवान को समर्पित है ? क्या हरीप्रेम से हमारा हृदय विभोर हो जाता है ? क्या हम भक्तिप्रेमरुपी सद्गुरुने बतलाए मार्गपर जा रहे है ? कुलस्वामीनीकी उपासना में क्या सचमुच हमारा नवरात्र धन्य हुआ है ? अगर इसका उत्तर हा है तो दशहरे के दिन माता के नाम अर्पीत होनेवाले बलीप्रथाको हम विरोध करे। संत ज्ञानेश्वर बलीका सत्य अर्थ समझाते है।
प्राणशक्तिचामुंडे । प्रहारूनि संकल्पमेंढे । मनोमहिषाचेनि मुंडे । दिधली बळी ॥ ज्ञानेश्वरी-12-53॥
महावैष्णव ज्ञानेश्वर महाराज की उपासना यात्रा में किस भैंसे की और दुंबे की बली दि जाती है ? यह समझनेका हम प्रयास करेंगे ।
संकल्प विकल्प रुपी दुंबा एवं मनरुपी भैंसा इनको प्राणशक्ति चामुंडा देवी को बली दिया है ! ऐसे संत ज्ञानेश्वर बता रहे है। ज्ञानदेव का ऐसा नवरात्री का समापन विलक्षण है । यह एक आंतरिक रहस्य है जिसमे मन-चित्त की बली देने की यह यौगीक पद्धती सद्गुरुकृपाके बिना असंभव है इसी कारण से एक मर्यादित स्तर की चिंतना ही यहा प्रकट करनेका प्रयास है।
उपासना में जो सहज ही होनेवाला है उस विलक्षण घटना में शुरु से ही मन या चित्त को जुलुम जबरदस्तीसे दबानेका कारण नाही, इस यात्रा में सुक्ष्म स्थिती में जाते समय उपासना का संवेदनशिल नाजुक प्रांत शुरु हो जाता है। मन का या चित्त का क्रियासंभव यह केवल कुंडलिनी प्राणशक्तीके तेज का ही होता है। अपेक्षित मन मौनी और चित्त चैतन्य यह सद्गुरुकृपासे सहज ही घटीत होता है।
अपनी गुरुपरंपरा बताते हुए ज्ञानेश्वर कहते है की आदिनाथ याने शिव जो सारे सिद्धों के गुरु है उनका मच्छिंद्र प्रमुख शिष्य है। मच्छिंद्रनाथ ने गोरक्षनाथ को बोध दिया और गोरक्षने गहीनीनाथ को । गहीनीनाथ ने निवृत्तीनाथपर कृपा की और निवृत्तीनाथ ने अपने छोटे भाई ज्ञानदेव को सार दिया। इस परंपराको देखकर कैवल्यरुप संत ज्ञानेश्वर पर नाथपंथीय हठयोगका प्रभाव है यह बात स्पष्ट हो जाती है ।
हठयोग शक्तिवादी है। इसमे शक्ति और ज्ञान निष्ठा के साथ उपासक का जीवन समर्पित होता है। ज्ञान याने शिव और कुंडलिनी याने शक्ति। यह शिवशक्तिसामरस्यान्वित उपासना हठयोग मार्ग से फलद्रुप होती है। दुसरा कोई संप्रदाय जिस को चामुंडा ऐसा संबोधित नही करता उस कुंडलिनी शक्ति या प्राणशक्ति को चामुंडे ऐसा कहकर उस अतिप्राचीन नाथपरंपराका ज्ञानेश्वर गौरवता पूर्ण उल्लेख करते है।
चामुंडा यह अज्ञ लोगोंकी देवी है। अतिवेगवान विकार वायुसे त्रस्त होने से विगलितगात्र अवस्था जिन्हे प्राप्त हुई है, बंधन में फँसे होने के कारण आधिभौतिक, आधिदैविक एवं अध्यात्मिक दु:ख का अनुभव लेनेवाले किसीभी जीव को अज्ञ कहा गया है। ऐसे अज्ञ जीवोंके सारे बंधन तोडके उनका शिवत्व से मिलन करानेवाली यह चामुंडा महदंबा है।
चामुंडा याने तपस्विनी कुमारिका। जिसकी उपासना करके उपासक को शिवत्व का स्मरण आता है। नवरात्री में यह समर्पणका चितशक्तिविलास अपनेआप चलता रहता है। जो प्रारंभ में प्रकृतीवशात मै अनाथ हूँ, ऐसा अनर्गल बोलता रहता है वही जीव चामुंडा की कृपा से शिवत्व का स्मरण आते ही अपनेआप नाथ हो जाता है और औरोंको भी सनाथ करने का सामर्थ्य प्राप्त करता है।
नाथपंथी बाहरसे शिव, भीतरसे शाक्त और समाज में वैष्णव होना चाहिए ऐसाही संदेश है। उस कारण वैष्णवता उसका हृदय, शिवता यह मस्तक तो शक्तियुक्त होना ही मन होता है। स्वभावत: वह शक्तिमय, योगनिष्ठ, जनहितकारी, आचारवान होता है। इसी कारण से वह नाथ इस संज्ञाको पात्र हो जाता है।
प्रारंभ में मन-चित्त की क्रिया जब मलीन होती है तब नाथत्व अप्रकट रहता है। जीवकी यह अनाथ अवस्था होती है। वहा पशुवत चेतना प्रभावी होती है।उपासना की इस सहज यात्रा में उस संवेदनशील मोडपर वह मलीनता कुंडलिनी में लीन हो जाती है। यह सहज लीनता महत्त्वपूर्ण घटना सिद्ध होती है।
मनोदोष याने संकल्प विकल्प है, चित्तदोष याने असत पर श्रद्धाशील होना है। यह प्राणशक्ति जागृत होते ही यह दोष नष्ट होते है। अर्थात इन दोषों को अर्पण करना ज्ञानदेव को अपेक्षित है, इसी कारण से ज्ञानदेव के नवरात्री में देवीका ठाट असामान्य है। यहा वे वीरयोगी लक्षणा प्रकट कर रहे है। यह वीरयोगी चामुंडा भवानी को संकल्प विकल्परुपी बली अर्पित कर शिव हो जाता है।
उसका नवरात्र जागर सिद्ध हो जाता है, वह अज्ञान का सिमोल्लंघन करके अनंत चैतन्य के प्रांगण में विजयोत्सव मनाता है। आगे भी उत्कट उपासनारुपी पुर्णिमा को कोजाग्रती ? प्रश्न पुछनेवाली शक्ती ऐसे जागृत हुए नाथ को देखकर प्रसन्न हो जाती है। ज्ञानरुपी चंद्र के शितल प्रकाश में अमृतस्य पुत्र: ! इस भावमयी दुग्धामृत का प्राशन कर वह अमर हो जाता है। संत ज्ञानेश की परंपरा ऐसे नाथ - वैष्णव के प्रवेशसे धन्य हो जाती है ! ऐसे तापहीन मार्तंड का यह मस्त नृत्य, यह आनंदगान अस्तित्व में चलता रहता है।
भवतारिणी चामुंडा के चरणो में प्रतिक्षण समर्पित भावमयता का यह अखंड जागर हम शुरु करे और अज्ञानरुपी भैंसा उसके चरणो में बली दे। जय चामुंडा भवानी !
लेखनसेवा- दामोदर प्र. रामदासी !
महावैष्णव ज्ञानेश्वर महाराज की उपासना यात्रा में किस भैंसे की और दुंबे की बली दि जाती है ? यह समझनेका हम प्रयास करेंगे ।
संकल्प विकल्प रुपी दुंबा एवं मनरुपी भैंसा इनको प्राणशक्ति चामुंडा देवी को बली दिया है ! ऐसे संत ज्ञानेश्वर बता रहे है। ज्ञानदेव का ऐसा नवरात्री का समापन विलक्षण है । यह एक आंतरिक रहस्य है जिसमे मन-चित्त की बली देने की यह यौगीक पद्धती सद्गुरुकृपाके बिना असंभव है इसी कारण से एक मर्यादित स्तर की चिंतना ही यहा प्रकट करनेका प्रयास है।
उपासना में जो सहज ही होनेवाला है उस विलक्षण घटना में शुरु से ही मन या चित्त को जुलुम जबरदस्तीसे दबानेका कारण नाही, इस यात्रा में सुक्ष्म स्थिती में जाते समय उपासना का संवेदनशिल नाजुक प्रांत शुरु हो जाता है। मन का या चित्त का क्रियासंभव यह केवल कुंडलिनी प्राणशक्तीके तेज का ही होता है। अपेक्षित मन मौनी और चित्त चैतन्य यह सद्गुरुकृपासे सहज ही घटीत होता है।
अपनी गुरुपरंपरा बताते हुए ज्ञानेश्वर कहते है की आदिनाथ याने शिव जो सारे सिद्धों के गुरु है उनका मच्छिंद्र प्रमुख शिष्य है। मच्छिंद्रनाथ ने गोरक्षनाथ को बोध दिया और गोरक्षने गहीनीनाथ को । गहीनीनाथ ने निवृत्तीनाथपर कृपा की और निवृत्तीनाथ ने अपने छोटे भाई ज्ञानदेव को सार दिया। इस परंपराको देखकर कैवल्यरुप संत ज्ञानेश्वर पर नाथपंथीय हठयोगका प्रभाव है यह बात स्पष्ट हो जाती है ।
हठयोग शक्तिवादी है। इसमे शक्ति और ज्ञान निष्ठा के साथ उपासक का जीवन समर्पित होता है। ज्ञान याने शिव और कुंडलिनी याने शक्ति। यह शिवशक्तिसामरस्यान्वित उपासना हठयोग मार्ग से फलद्रुप होती है। दुसरा कोई संप्रदाय जिस को चामुंडा ऐसा संबोधित नही करता उस कुंडलिनी शक्ति या प्राणशक्ति को चामुंडे ऐसा कहकर उस अतिप्राचीन नाथपरंपराका ज्ञानेश्वर गौरवता पूर्ण उल्लेख करते है।
चामुंडा यह अज्ञ लोगोंकी देवी है। अतिवेगवान विकार वायुसे त्रस्त होने से विगलितगात्र अवस्था जिन्हे प्राप्त हुई है, बंधन में फँसे होने के कारण आधिभौतिक, आधिदैविक एवं अध्यात्मिक दु:ख का अनुभव लेनेवाले किसीभी जीव को अज्ञ कहा गया है। ऐसे अज्ञ जीवोंके सारे बंधन तोडके उनका शिवत्व से मिलन करानेवाली यह चामुंडा महदंबा है।
चामुंडा याने तपस्विनी कुमारिका। जिसकी उपासना करके उपासक को शिवत्व का स्मरण आता है। नवरात्री में यह समर्पणका चितशक्तिविलास अपनेआप चलता रहता है। जो प्रारंभ में प्रकृतीवशात मै अनाथ हूँ, ऐसा अनर्गल बोलता रहता है वही जीव चामुंडा की कृपा से शिवत्व का स्मरण आते ही अपनेआप नाथ हो जाता है और औरोंको भी सनाथ करने का सामर्थ्य प्राप्त करता है।
नाथपंथी बाहरसे शिव, भीतरसे शाक्त और समाज में वैष्णव होना चाहिए ऐसाही संदेश है। उस कारण वैष्णवता उसका हृदय, शिवता यह मस्तक तो शक्तियुक्त होना ही मन होता है। स्वभावत: वह शक्तिमय, योगनिष्ठ, जनहितकारी, आचारवान होता है। इसी कारण से वह नाथ इस संज्ञाको पात्र हो जाता है।
प्रारंभ में मन-चित्त की क्रिया जब मलीन होती है तब नाथत्व अप्रकट रहता है। जीवकी यह अनाथ अवस्था होती है। वहा पशुवत चेतना प्रभावी होती है।उपासना की इस सहज यात्रा में उस संवेदनशील मोडपर वह मलीनता कुंडलिनी में लीन हो जाती है। यह सहज लीनता महत्त्वपूर्ण घटना सिद्ध होती है।
मनोदोष याने संकल्प विकल्प है, चित्तदोष याने असत पर श्रद्धाशील होना है। यह प्राणशक्ति जागृत होते ही यह दोष नष्ट होते है। अर्थात इन दोषों को अर्पण करना ज्ञानदेव को अपेक्षित है, इसी कारण से ज्ञानदेव के नवरात्री में देवीका ठाट असामान्य है। यहा वे वीरयोगी लक्षणा प्रकट कर रहे है। यह वीरयोगी चामुंडा भवानी को संकल्प विकल्परुपी बली अर्पित कर शिव हो जाता है।
उसका नवरात्र जागर सिद्ध हो जाता है, वह अज्ञान का सिमोल्लंघन करके अनंत चैतन्य के प्रांगण में विजयोत्सव मनाता है। आगे भी उत्कट उपासनारुपी पुर्णिमा को कोजाग्रती ? प्रश्न पुछनेवाली शक्ती ऐसे जागृत हुए नाथ को देखकर प्रसन्न हो जाती है। ज्ञानरुपी चंद्र के शितल प्रकाश में अमृतस्य पुत्र: ! इस भावमयी दुग्धामृत का प्राशन कर वह अमर हो जाता है। संत ज्ञानेश की परंपरा ऐसे नाथ - वैष्णव के प्रवेशसे धन्य हो जाती है ! ऐसे तापहीन मार्तंड का यह मस्त नृत्य, यह आनंदगान अस्तित्व में चलता रहता है।
भवतारिणी चामुंडा के चरणो में प्रतिक्षण समर्पित भावमयता का यह अखंड जागर हम शुरु करे और अज्ञानरुपी भैंसा उसके चरणो में बली दे। जय चामुंडा भवानी !
लेखनसेवा- दामोदर प्र. रामदासी !
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